गाजीपुर:गृष्मकालीन खेत की जूताई क्यों आवश्यक है ?

गाजीपुर 13 मई, 2025 : जिला कृषि रक्षा अधिकारी उमेश कुमार ने जनपद के किसान भाईयों/बहनों का ध्यान आकृष्ट किया है कि परम्परागत कृषि विधियां यथा-कतार में बुवाई, फसल चक्र, सहफसली खेती, ग्रीष्मकालीन जुताई आदि कम लागत में गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। इनको अपनाने से जल, वायु, मृदा व पर्यावरण प्रदूषण भी कम होता है। कीट एवं रोग नियंत्रण की आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आई0पी0एम0) के अन्तर्गत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर बल दिया जाता है। रबी फसलों की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई आगामी खरीफ फसल के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी है। ग्रीष्मकालीन जुताई मानसून आने से पूर्व मई-जून में की जाती है। ग्रीष्मकालीन जुताई का मुख्य उद्देश्य एवं उससे लाभ निम्नवत है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है जिससे मृदा की जल धारण क्षमता बढ़ती है जो फसलो के बढ़वार के लिए उपयोगी होती है। खेत की कठोर परत को तोड कर मृदा को पौधों की जड़ो के विकास के लिए अनुकूल बनाने हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यधिक लाभकारी है। खेत में उगे हुए खर-पतवार एवं फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते है। जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। मृदा के अन्दर छिपे हुए हानिकारक कीड़े, मकोड़े, उनके अण्डे, लार्वा, प्यूपा एवं खर-पतवारों के बीज गहरी जुताई के बाद सूर्य की तेज किरणों के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते है। गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु, कवक, निमेटोड एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव मर जाते है जो फसलो में बीमारी के प्रमुख कारण होते है। जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों के वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है। मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोड़े गये हानिकारक रसायनों के अपघटन में सहायक होती है।