गाजीपुर: अच्छी पैदावार लेने हेतु किसान संतुलित उर्वरक का उपयोग करें -जिला कृषि अधिकारी
गाजीपुर 09 दिसम्बर, 2024: जिला कृषि अधिकारी ने बताया है कि कृषक भाई किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन हेतु नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का अनुपात 4:2:1 होना चाहिए। वर्तमान में यह अनुपात 28:9:1 है। यह अनुपात प्रदर्शित करता है कि किसान खेती के लिए बुवाई के समय अधिकांशतः डी०ए०पी० का ही प्रयोग कर रहे है। इससे उनकी फसल को पोटाश की मात्रा ही मिल पा रहा है, जबकि एन०पी०के० का प्रयोग करने पर सन्तुलित रूप से तीनो महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की उपलब्धता हो जाएगी। कृषक बन्धु मुख्य पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु एन०पी०के० (2:32:16, 10:26:26) जैसे मिश्रित उर्वरकों के प्रयोग से फसलों में सन्तुलित मात्रा में पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है, जिसका सकारात्मक प्रभाव फसल उत्पादन व उपज की गुणवत्ता वृद्धि पर पड़ेगा। रबी फसलों जैसे चना, मटर, मसूर, गेहूँ, सरसों तथा आलू की बुवाई के समय फास्फेटिक उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान में फास्फेटिक उर्वरकों के कई विकल्प उपलब्ध है, जैसे डी०ए०पी०, एन०पी० के०, एस०एस०पी०। एन०पी० के० के विभिन्न ग्रेड के काम्पलेक्स फर्टिलाइजर्स में सन्तुलित रूप से नत्रजन फास्फोरस एवं पोटैशियम तीनों अत्यन्त महत्वपूर्ण प्राथमिक पोषक तत्वों की उपलब्धता हो जाती है। आलू जैसे महत्वपूर्ण कामिर्शियल फसल के लिए सन्तुलित उर्वरक, विशेष रूप से पोटाश की उत्पादन एवं गुणवक्ता हेतु महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी प्रकार फास्फोरस के दूसरे महत्वपूर्ण उर्वरक एस०एस०पी० जिसमें 16 प्रतिशत फास्फोरस एवं 11 प्रतिशत सल्फर के साथ कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। यह उर्वरक सरसों जैसे तिलहनी फसलों के उत्पादन हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सरसों के तेल के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हेतु सल्फर की आवश्यकता होती है। दलहनी फसलों के लिए भी एन०पी०के० जैसे उर्वरक डी०ए०पी० की तुलना में कम व्यय व सन्तुलित है। कम अभाव में प्रायः किसान केवल डी०ए०पी० का प्रयोग कर रहे है। असन्तुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से लागत में बृद्धि होती है तथा उर्वरा क्षमता में कमी के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या में वृद्धि होती है। कृषक भाई सन्तुलित उर्वरक का उपयोग कर फसल उत्पादकता व गुणवक्ता में सुधार के साथ-साथ अनेक फायदे जैसे- गेहूँ के दाने मोटे एवं चमकदार, सरसों में तेल की मात्रा में बृद्धि, लहसुन में गन्ध व गुणवक्ता में वृद्धि के साथ ही फसलों में कीट व रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। कृषक भाई से अनुरोध है कि मृदा परीक्षण करवाने और फसल की आवश्यकता के अनुरूप उर्वरकों का प्रयोग करे।