गाजीपुर-कवित्री मधु राय जी की नवीनतम कविता-गाजीपुर टुड़े

संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया समाज ।
घिर गई है ज़िन्दगी की नैया तूफानों के बीच कितनी गज़ब हो गई जिन्दगी ।
लुट रही इंसानियत की लाज आज इसांनो के बीच । कितना बदल गया इंसान।
खुद का वजूद खोकर ,बेच रहा इमान कितना गिर गया इंसान
विश्वास खो गया खो गया सम्मान ।रिश्ते बिखरे नाते टूटे टूट गया आत्म सम्मान , कितना गिर गया इंसान ।
शक्ल न बदली सूरत न बदली ,बदल गया व्यवहार ।कितनी फितरत गई बदल भगवान ।
नर के भेष में घूम रहा नरभक्षी , ओढ़े मुखोटां शराफ़त का , इंसानियत का खून पी रहा नर कर रहा अपनेपन का ढोंग , कितना बदल गया इंसान,,,,,,,,,,,।
दौलत की खातिर बिक रहा इमान,। दौलत की तराजू में बिक रहा इमान ।नश्वर दौलत की खातिर बिक रहे रिश्ते नाते । दौलत की प्यास इस कद्र बढ़ रही प्यास बुझाने की कोशिश में वो कर रहे कत्लें आम। देश बेच रहे बेच रहे अपनों की लाश।
इन बहशीं लोगों के आगे बिक रही अस्मत अपनों की ।अट्टाहास कर रहा देख अपने की बहती रक्त की नदियों का ।।आज़ शर्मसार हो रहीनियत। ज़िन्दगी आज़ जा रही रसातल की ओर।
हैवानियत खडी अट्टाहस कर रही । मानवता खड़ी सिसक रही सिरनवाय पल प्रतिपल ।
कैसी है ये दुनियां कैसे हैं ये लोग पल पल ।प्रतिपल बदल रही जिन्दगी की धारा।
किस दुनिया में जा रहे जहां लाश बनकर रह गए

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