गाजीपुर जिला अस्पताल हाल बे हाल

गाजीपुर-जिला अस्पताल नये भवन में स्थानांतरित हो गया, लेकिन व्यवस्थाएं जस की तस बनी हुई है। बजट के अभाव में गंभीर बीमारियों की दवा और इंजेक्शन का टोटा लंबे समय से बरकरार है। इतना ही नहीं डेढ़ वर्ष से एलपी (लोकल पर्चेज) तक का बजट अस्पताल प्रशासन के पास नहीं है। गुरबत में जीने वालों को भी अस्पताल से दवा न मिलने के कारण उनका भरपूर शोषण हो रहा है। तीमारदार बाहर से दवा खरीदने को मजबूर हैं। जिला मुख्यालय पर बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले मरीज सिर्फ चिकित्सकों से पर्चे पर परामर्श लेकर चले जा रहे हैं और दवाईयों के नाम निजी मेडिकल स्टोर का बाहर खड़ा होना पड़ता है। यह स्थिति करीब दो वर्षों से बनी हुई है। अस्पताल प्रशासन इस मामले में हर बार अपना पल्ला झाड़ कर सिर्फ बजट नहीं होने के शब्द को लेकर माथा पिटता रहता है। करीब तीन माह पूर्व जब मिश्र बाजार स्थित पुराने अस्पताल का स्थानांतरण गोरा बाजार स्थित बने 200 बेड के नये अस्पताल में हुआ, तब लोगों को लगा की अब बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मिल सकेगी। लेकिन धीरे-धीरे स्थानांतरण का समय तीन से चार माह बीत गया, लेकिन दवाईयों और इंजेक्शन का टोटा जस का तस बना रहा है। अस्पताल प्रशासन की मानी जाए तो पिछले दो वर्षों से ही दवा कंपनी का 90 लाख रुपया बकाया है, लेकिन बजट अभी तक नहीं आया। इस वित्तीय वर्ष के शुरूआत होते ही मात्र 25 लाख रुपये का बजट शासन ने अस्पताल प्रशासन को भेजा। इसमें दवा के साथ अन्य कार्य भी शामिल है। ऐसी स्थिति में दवा उपलब्ध होना मुश्किल साबित हो रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सिर्फ सामान्य बीमारियों में (बुखार) संबंधी ही दवाईयां मिल पाती है, जबकि खांसी सहित अन्य गंभीर बीमारियों की दवाईयां तो मरीजों को बाहर निजी मेडिकल केंद्रों से लेनी पड़ती है। सूत्रों की मानी जाए तो जिला अस्पताल में दो सौ प्रकार की दवाईयों हर हाल में उपलब्ध रहनी चाहिए, लेकिन वर्तमान समय में दौ सौ तो दूर सामान्य बीमारियों तक दवा उपलब्ध नहीं है। अस्पताल के औषधि भंडार कक्ष में डायरिया की अहम दवा मेटोजिल कि एक भी गोली मौजूद नहीं है। आयरन और महत्वपूर्ण इंजेक्शनों का भी टोटा बना हुआ है। ऐसी स्थिति में सिर्फ मरीजों को इलाज के नाम पर परामर्श सिर्फ चिकित्सकों से मुफ्त मिल जाती है, लेकिन दवाईयों के लिए उन्हें नजी मेडिकल स्टोर पहुंचना पड़ता है। इस संबंध में सीएमएस डॉ. एसएन प्रसाद ने बताया कि लंबे समय से दवा कंपनियों का बकाया बरकरार है। शासन की ओर से बजट नहीं मिल पाने से दिक्कत आ रही है। फिलहाल बजट के नाम पर 25 लाख रुपये आए है, जिससे महत्वपूर्ण दवा के लिए आर्डर दवा कंपनियों को किया गया है।