ग़ाज़ीपुर

गाजीपुर-पत्रकार बुके तिवारी और नये थानाध्यक्ष

गाजीपुर- सुबह के 9:00 बज रहे थे मैं नहा कर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। इसी समय हमारे मित्र पत्रकार बुके उर्फ बीके तिवारी का फोन आता है कि क्या कर रहे हो चिरकुट ? तिवारी जी जब खुशमिजाज होते हैं तो मुझे इसी नाम से संबोधित करते हैं।मैंने कहा तिवारी जी स्नान ध्यान हो चुका है और भोजन करने की तैयारी है।इसके बाद बुके तिवारी ने पूछा कि इसके बाद तुम्हारा क्या कार्यक्रम है ? मैंने कहा तिवारी जी खाना खा कर के कचहरी की तरफ निकलूगा, ताकि दो-चार खबर न्यूज़ पोर्टल के लिए मिल जाए।इस पर तिवारी जी  उधर से बोलते हुए कहा कि खाना खाकर तैयार रहना, चलना है नए थानाध्यक्ष से मिलना है। उनका मिलने के लिए फोन आया था।मैंने कहा तिवारी जी थानाध्यक्ष से मिलने का क्या मतलब है ? कोई घटना या दुर्घटना तो रात्रि में नहीं हुई है ? तो तिवारी जी ने उधर से कहा कि तुम तो जानते ही हो कि जब से नए पुलिस कप्तान का जनपद में आगमन हुआ है, तभी से कई थाना प्रभारी और थानाध्यक्ष का स्थानांतरण इधर से उधर हुआ है। हमारे इलाके के नए थानाध्यक्ष ने कल रात हमें फोन किया था और कहा था कि तिवारी जी यदि कल समय हो तो थाने पर आ जाईयेगा, आपके दर्शन भी हो जाएंगे और दुआ सलाम भी हो जाएगा। इसीलिए सोच रहा हूं की नये थानाध्यक्ष से औपचारिक मुलाकात करके बधाई दे दूं भविष्य में काम आएगा। मैं भी नहा खाकर तिवारी जी का इंतजार करने लगा‌।ठीक 10:15 बजे तिवारी जी का आगमन हुआ और मुझे अपनी बाइक की पिछली सीट पर बिठाकर मुझे नए थानाध्यक्ष से मिलने चल दिए। जब हम दोनों पहुंचे तो थानाध्यक्ष महोदय अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे। तिवारी जी के पूर्व परिचित कांस्टेबल ने जब जाकर थानाध्यक्ष महोदय से तिवारी जी के आगमन की सूचना दिया तो वे वर्दी पेटी चढ़ाया और थानाध्यक्ष महोदय 15 मिनट बाद अपने कार्यालय में अपनी कुर्सी पर विराजमान हुए। तिवारी जी अपने साथ ले आये बुके को उनको देते हुए कई फोटो मेरे से अपने मोबाइल में खिंचवा ली और इसके बाद नये नवेले थानाध्यक्ष से हाथ मिलाते हुए अपना परिचय दिया और चाय जलपान के बाद चलते बने। मैं रास्ते भर यही सोचता रहा कि थाने पर आने वाले हर थाना प्रभारी से और थानाध्यक्ष से पत्रकार बुके तिवारी जैसे पत्रकार और अन्य लोग क्यों बुके देकर मिलते हैं और उस फोटो को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लगा देते हैं। इसका इन्हें क्या लाभ मिलता है।मै इन प्रश्नों का जवाब सोच रहा था लेकिन मिल नहीं रहा था।मैंने सोचा चलो मुझे इससे क्या लेना देना। पत्रकार तिवारी जी ने मुझे घर छोड़ा और चलते बने। लेकिन उसी दिन शाम को गोरा बाजार में हनुमान मंदिर के पास स्थित गुड्डू की चाय की दुकान पर अपने प्रिय मित्र मियां बातूनी से जब इस बात की चर्चा किया तो उन्होंने कहा कि तुम मुर्ख थे और मुर्ख ही रहोगे। हमने कहा मियां बातूनी वह कैसे ?  मियां बसूनी ने बात को आगे बढ़ते हुए कहा कि जब भी किसी थाने पर कोई नया थाना प्रभारी या थानाध्यक्ष आता है और छुटभैय्ए पत्रकार या अन्य तथाकथित समाजसेवी या सम्भ्रांत लोग मुलाकात करने जाते हैं तो इसका मतलब यह होता है की साहब मेरे उपर दया दृष्टि बनाये रखिएगा। यदि आप तालाब के मगरमच्छ है तो मैं आपके तालाब की एक छोटी सी मछली हूं। कमाने खाने मे अगर कहीं से कोई शिकवा शिकायत मिल जाए तो मेरे ऊपर कृपा बनाए रखना, क्योंकि अधिकांशत: पत्रकार, तथाकथित समाजसेवी या सम्भ्रांत लोग अब पत्रकारिता, समाजसेवा कम, दलाली ज्यादा कर रहे हैं।ऐसे में कभी-कभी ऐसे लोगों को लेने के देने पड़ जाते हैं।कहीं पिट जाते हैं तो कभी कभी थाने में उनके खिलाफ कोई तहरीर दे देता है। इससे रक्षा के लिए यह नए नवेले थानाध्यक्ष और थाना प्रभारी के यहां हाजिरी लगाना बहुत जरूरी समझते हैं और मजबूरी भी समझते हैं। खैर मियां बातूनी की बातों से मेरी सारी जिज्ञासाओं का लगभग समाधान हो चुका था क्योंकि कई बार पत्रकार तिवारी जी क्षेत्र में गरियाए ,पीटाए और उनके खिलाफ थाने में तहरीर भी दी जा चुकी है। लेकिन तिवारी जी का बालबांका भी आजतक नहीं हुआ है।