गाजीपुर-मधु राय जी जो समाज का दर्पण है उनके ब्यथा की एक झलक

मैं एक नारी हूँ,
किसी की बेटी किसी की बहन।।।
पर मैं एक नारी हूँ,
पत्नी भी हूँ माँ भी हूँ बहू भी हूँ सास भी हूं,अनेक रिश्तो को समेटे हुए हूं तो मैं पर एक नारी ही हूँ।।
देवी हूँ पूज्या हूं मंदिर में घर मे भी पूजी जाती हूं पर मैं हूं तो एक नारी ही हूं।।
शक्ति से परिपूर्ण नर की जन्म दात्री पर मैं एक नारी ही हूं।।
फिर भी मैं अबला ही कहलाती हूं।।
अपने ही खून से सिंचित कर बालक से तुझको युवा किया तुझे समाज मे नाम दिलाया पर हर बार नर से ठगी गई क्यो कि मैं एक नारी हूँ।।
हर प्रताड़ना सह कर भी उफ तक नही करती हूं क्योंकि मैं एक नारी हूं।।
हर पथ पर साथ दे नर का हर सुख दुख को बाटा बड़े जतन से जीवन का हर ज्ञान कराया आसमान में उड़ने की छमता दे कर तुझे गर्व से जीना सिखलाया पर दानव बन कर हर पल तूने मुझे सताया।।।
कई बार गिरी मैं कई बार उठी मैं पर फिर भी न कोई शिकवा किया क्योंकि मैं एक नारी हूं।।
हाँ फिर भी मैं गर्व से कहती हूं कि हां मैं एक नारी हूँ।। मधु राय

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