गाजीपुर-स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास जिससे आप लोगों को परिचित करायेंगे
गाजीपुर – 15 अगस्त 2024 को हम और हमारे देश के करोड़ों -अरबो लोग अपने देश के 78 वें आजादी का जश्न मना रहे हैं। लेकिन मैं अपने देश के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जब-जब सोचता हूं तो बार-बार मेरे दिमाग में एक बात चुभती है कि कबीर,रहीम,रसखान, तुलसीदास, सूरदास , बिहारी आदि के काब्य रचनाओं को लिपिबद्ध किया गया लेकिन उस समय के स्वतंत्रता सेनानीयों के इतिहास को लिपिबद्ध क्यों नहीं किया गया? हिंदुस्तान का ऐसा शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां के 10-5 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति नही दी होगी। यदि उसे समय के ग्रामीण पढ़े लिखे और शिक्षित होते तो अपने गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघर्ष और बलिदान को अवश्य लिपिबद्ध किया होता। आज देश के प्रत्येक ग्रामीण युवाओं को अपने देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पर गर्व होता और आज का पिता अपने युवा बच्चों को अपने गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान की कहानी बताता और सुनता तो देश का हर ग्राम वासी अपने गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के ऊपर गर्व करता, लेकिन दुर्भाग्य था कि उस समय हमारा देश शिक्षा के मामले में संभवत दुनिया के सर्वाधिक पिछड़े देशों में से एक था। भारत का स्वतंत्रता संग्राम जो अंग्रेजों के विरुद्ध शुरू किया गया वह 18वीं शताब्दी से शुरू होता है लेकिन हमारे देश के तमाम आदिवासियों और राजा महाराजाओं ने 18 वीं शताब्दी से पूर्व ही स्वतंत्रता संग्राम शुरू कर दिया था। ऐसा मुझे प्रतीत होता है। हम अपने देशवासियों के अशिक्षित होने की वजह से अपने ग्राम वासियों के संघर्ष और बलिदान से आज भी अपरिचित है,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रांतो के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इतिहास को बलिदान को हमें बताया और पढ़ाया जाता है। हमारे देश का, हमारे गांव का, हमारे प्रदेश का यह यह सच्चा इतिहास गुजरे हुए काल खंड में दफन है जिसे आने वाली पीढ़ी शायद ही जान और समझ सके। लेकिन आज भी हम और आप अपने गांव के 70+वर्ष के बुजुर्गों से विलुप्त कुछ इतिहास सुनकर जानकर लिपिबद्ध भी कर सकते हैं और सोशल मीडिया पर शेयर कर उसे चिरस्थाई बना सकते हैं।आप सभी पाठकों से सादर निवेदन है कि आप शुरुआत तो करें। ब्लॉग कैसा लगा लाईक, कमेंट और त्रुटियां बताने का कष्ट अवश्य करें।सादर प्रणाम