गोरखपुर-पं०हरिशंकर तिवारी एक युग का अंत

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गोरखपुर-हिन्दुस्तान लाईव डाट काम के अनुसार गोरखपुर के बड़हलगंज के टाडा़ गांव निवासी हरिशंकर तिवारी वर्ष 1985 में जेल में बंद रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा से निर्दल चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद इन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में मजबूत पकड़ बना ली। उन्हें पूर्वांचल की बाहुबली राजनीति का पंडित माना जाने लगा। देखते ही देखते बुलेट और बैलट दोनों पर उनकी ऐसी धाक जमी की हरिशंकर तिवारी लगातार 6 बार विधायक का चुनाव जीते चले गए। वर्ष 1997 में वह प्रदेश सरकार में मंत्री बने.इसके बाद हर सरकार की जरूरत बनते गए। छात्र राजनीति में सक्रिय हरिशंकर तिवारी पर 1980 के दशक में कई आपराधिक मामले दर्ज हो गए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की सरकार में हरिशंकर तिवारी पर कार्यवाही हुई पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। वह वर्ष 1985 में जेल मे रह कर चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा इसमें उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मारकंडे चंद्र को पराजित किया और पहली बार विधायक बने। जेल में रहकर आपराधिक छवि के व्यक्ति के विधायक बनने का यह पहला मामला था। वर्ष 1985 के बाद से वह लगातार विधायक बनते रहे। इस दौरान 1997 से हर सरकार में वह मंत्री भी रहे। वर्ष 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा। उनकी आयु भी काफी हो चुकी थी।वर्ष 2017 मे बसपा के टिकट पर उनके बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से विधायक बने।वर्ष 2022 मे विनय शंकर तिवारी भाजपा प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी से चुनाव हार गए। विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति प्रभावी हुए हरिशंकर तिवारी 1970 का दशक था पटना यूनिवर्सिटी मे जेपी आंदोलन अपने चरम पर था। उसकी तपिश गोरखपुर यूनिवर्सिटी तक पहुंच चुकी थी। छात्रों के नारे राजनीति में नई बुनियाद बना रहे थे। विश्वविद्यालय नेता बनने की नर्सरी बन चुके थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय भी उस में शामिल हो गया। गोरखपुर विश्वविद्यालय में तब ब्राह्मण और ठाकुर की राजनीतिक चलती थी। एक गुट का नेतृत्व शंकर तिवारी करने लगे ब्राह्मण छात्र नेताओं को उनका पूरा समर्थन मिलता था और जीत के बाद प्रत्याशी आशीर्वाद लेने तिवारी हाता जाता था।साभार-हिन्दुस्तान लाईव डाट काम

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