लखनऊ-माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह और उसके साथी संजय मिश्रा की हत्या के मामले में आरोपियों स्वर्गीय कृष्णानंद राय के चचेरे भाई बृजेश कुमार राय, मनोज राय और आनंद राय उर्फ मुन्ना राय को क्लीन चिट देने वाली फाइनल रिपोर्ट( एफआर) को स्वीकार करने के सीजेएम के आदेश को जिला न्यायाधीश संजय शंकर पांडे ने खारिज कर दिया। जिला जज ने पत्रावली को लौटाते हुए सीजीएम को फिर से सुनवाई का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सीजीएम ने दोहरे हत्याकांड में पुलिस की एफआईआर को चुनौती देने वाली प्रोटेस्ट अर्जी को खारिज कर दिया था ।साथ ही 1 मार्च 2019 को एफअर स्वीकार कर लिया था, इसे खारिज किया जाता है।सीजेएम को आदेश देते हुए जिला जज ने कहा कि वह वादी की प्रोटेस्ट आर्जी पर फिर से सुनवाई करें और विवेचना के लिए नए सिरे से आदेश करें। इससे पहले वादी विकास श्रीवास्तव की ओर से अधिवक्ता प्रांशु अग्रवाल ने सीजेएम के आदेश को चुनौती देने वाली निगरानी याचिका जिला जज की कोर्ट मे दिया था। इसमें बताया गया कि वादी ने मामले की रिपोर्ट 6 मार्च 2016 को विकास नगर थाने में दर्ज कराई थी। इसमें बताया गया कि उसकी बहन के पति को पुष्पजीत सिंह अपने मित्र संजय मिश्रा के साथ घर जा रहे थे। इसी बीच बाइक सवार आरोपियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चला कर दोनों की हत्या कर दी। आगे कहा गया क पुष्पजीत सिंह माफिया मुन्ना बजरंगी का साला था और उनके मुकदमों की पैरवी करता था । स्वर्गीय विधायक कृष्णानंद राय के चचेरे भाई बृजेश कुमार राय, मनोज राय और आनंद राय उर्फ मुन्ना ने विश्वजीत को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी। कहा गया कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने विवेचना की और आरोपी बृजेश कुमार राय, मनोज राय और आनंद राय उर्फ मुन्ना राय को क्लीन चीट दे दी थी।विवेचना ने बताया गया कि घटना के समय उनकी लोकेशन गाजीपुर, वाराणसी, बलिया मे बताते हुए मामले में 25 मई 2018 को फाइनल रिपोर्ट लगाकर सीजीएम कोर्ट में भेज दिया। पुलिस की इस फाइनल रिपोर्ट को वादी की ओर से चुनौती देने वाली प्रोटेस्ट अर्जी दी गई। सुनवाई के बाद सीएम ने 1 मार्च 2019 को वादी की अर्जी को खारिज कर पुलिस की एफआर को स्वीकार कर लिया। सीएम के आदेश को वादी ने विधिक रुप से दूषित बताते हुए जिला जज की कोर्ट में निगरानी याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई के बाद तत्कालीन जिला जज ने 6 सितंबर 2019 को वादी की याचिका को स्वीकार कर लिया था, साथ ही सीजेएम के आदेश को निरस्त करते हुए आदेश दिया कि वह फिर से अर्जी पर सुनवाई कर उचित आदेश पारित करें। जिला जज के आदेश को आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।इस पर हाई कोर्ट ने सुनवाई की और 6 अगस्त को जिला जज के आदेश को निरस्त कर दिया आदेश दिया कि इस मामले की नए सिरे से सुनवाई करें और आदेश दें। इसके बाद जिला जज ने वादी की निगरानी याचिका पर सुनवाई की और सीजीएम के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि सीजेएम मामले की प्रभावी विवेचना के लिए नए सिरे से उचित आदेश पारित करें। साभार-अमर-उजाला लखनऊ
