लोकसभा चुनाव से पुर्व हो सकता है आरक्षण मे आरक्षण

लखनऊ- जब से उत्तर प्रदेश मे लोकसभा चूनाव बसपा और सपा के सम्भावित गठबंधन द्वारा संयुक्त रुप से लडने का एलान हुआ है तभी से भाजपा के रणनीतिकार इस गठबंधन से निबटने की तरकीब खोजने में लगे हुए है । सुभासपा केमुखियाऔरकैविनेटमंत्रीओमप्रकाश राजभर भी कई बार पिछडों और दलितों के आरक्षण को पीछडा,अति पिछड़ा , दलित और अति दलित के रूप मे बटवारा चाहते है। यह फार्मूला सर्वप्रथम राजनाथ सिंह के दिमाग मे आया था लेकिन इस फार्मूले का उस समय उन्हीं के पार्टी के ओमप्रकाश सिह व कल्याण सिह के विरोध के चलते ठंढे बस्ते मे चला गया।फिर सपा अखिलेश सरकार ने दिसम्बर 2016 में इन सत्रह जातियों निषाद, बिन्द, मल्लाह,केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति,राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा तथा गौड़ को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव को प्रदेश कैबिनेट की मंजूरी दिला दी थी। इसके बाद केंद्र सरकार की संस्तुति के लिए भेजा था । साथ ही इस संबंध में अधिसूचना जारी कर इन जातियों को अनुसूचित जाति का लाभ देने के निर्देश सभी डीएम और एसपी को जारी कर दिए थे। ये निर्देश सभी जिलों में भेज भी दिए गए थे। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। तब से गेंद केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के पाले में है।

राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा कहते हैं कि ओबीसी की इन सत्रह जातियों की आर्थिक व शैक्षिक स्थित दलितों से बदतर हो गई है। उनका न तो सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व है और न ही वे समाज के अन्य क्षेत्रों में आगे आ सके हैं। सरकारी नौकरी में तो उनकी सिर्फ एक से दो फीसदी ही भागीदारी है। ऐसे में केंद्र सरकार को इसे तुरंत जारी करना चाहिए।

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