सवर्णों के आक्रोश से बेफिक्र भाजपा ,लेकिन क्यों ?

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार सवर्णों के आक्रोश से इतनी बेफिक्र क्यों है ? आइए इस का एक विश्लेषण करते हैं ।भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार अमित शाह और नरेंद्र मोदी को बहुत अच्छी तरह से पता है कि , जिस तरह से उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय मायावती के पक्ष में लामबंद है उस तरह से भारत के अन्य प्रांतों में दलित समुदाय किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष में लामबंद नहीं है। इसी को ध्यान में रखकर केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/ एसटी एक्ट में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के न्यायोचित फैसले को संसद के द्वारा बदल दिया है। अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के रणनीति कारों की सोच यह है कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के मिलन से जो पार्टी को घाटा होगा उसकी पूर्ति अन्य प्रांतों में दलितों का वोट लेकर किया जा सकता है। इसी सोच के तहत उन्होंने एससी/ एसटी एक्ट में संसद में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बना दिया। दूसरी तरफ आपको याद होगा बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय कांसीराम और वर्तमान मुखिया कुमारी मायावती बसपा के स्थापना के प्रारंभिक दिनों में जिस तरह से सवर्णों के खिलाफ अपशब्द बोलकर दलितों को अपने पक्ष में लामबंद किया , लगता है यही सोच वर्तमान समय में अमित शाह और उनके रणनीतिकारों की हो , क्यों कि वो अच्छी से जानते है कि एससी/ एसटी एक्ट में संशोधन से आक्रोशित सवर्ण जितना ही भाजपा, अमित शाह नरेंद्र मोदी को अपशब्द कहेगा उस की प्रतिक्रिया स्वरुप दलित समाज भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में लामबंद होकर मतदान करेगा। राजनीति में कब कौन सा दाव उल्टा पड़ेगा और कब सीधा पड़ेगा इस बात का फैसला तो समय ही करता है। लेकिन कुल मिलाकर देखना यह है कि क्या उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य प्रांत के दलित भाजपा का साथ देते हैं या नहीं ? फूलचंद सिह के बिचार