स्वच्छ भारत अभियान के तहत निर्मित सौचालयों की हकीकत

गाजीपुर- 2 अक्टूबर तक पूरे देश और प्रदेश को खुले में शौच मुक्त बनाने का सपना कितना हकीकत है और कितना फसाना , अगर यह देखना हो तो आप हिन्दुस्तान के किसी भी प्रदेश के किसी भी गांव में चले जाइए। वहां आपको जाने पर देखने को मिलेगा कि शासन के दबाव में , जिलों के प्रशासन हांफ रहे हैं और जिला प्रशासन के दबाव में सेक्रेटरी, ग्राम प्रधान, बीडीओ, एडीओ हाफ रहे हैं। एक शौचालय की लागत भारत सरकार ने 12 हजार रूपया तय कर रखी है। 12 हजार रूपये में ग्राम प्रधान को या सेक्रेटरी को एक शौचालय बनवाना है । इसी 12 हजार में गड्ढा भी खुदवाना है, ईट भी खरीदना है, सीमेंट और बालू भी खरीदना है और बनाने वाले मजदूर और मिस्त्री को मजदूरी का भुगतान भी करना है । मजबूरी में ग्राम प्रधान या सेक्रेटरी तीन हांथ का गड्ढा खुदवा दे रहे हैं। सबसे घटिया क्वालिटी की ईट,,सफेद बालू, सिमेंट से शौचालय का निर्माण करा रहे हैं। निर्मित शौचालयों की हालत यह है कि कोई कस कर एक लात मार दे तो शौचालयों की दीवारें टूट जाएंगी। लेकिन कागजों पर लक्ष्य पूर्ति दिखाने के लिए धुआंधार शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। तमाम ऐसे गांव हैं जिनको खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है लेकिन आज भी गांव की महिलाएं झुंड के झुंड सड़क के किनारे, पगडंडियों के किनारे सौच होती हुई सुबह और शाम आपको दिख जाएंगी।
ऐसे ही एक और गांव है जहां एक भी शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है ग्राम प्रधान ने बजट निकाल लिए हैं परन्तु निर्माण कर नहीं करते हैं ग्रामभीरा ग्रामपंचायत रईसपुर ब्लाक देवकली गाजीपुर का है एक बार गांव में जाकर देखें क्यो नहीं शौचालय का निर्माण किया जा रहा है