इंदौर-जिसने कभी शराब को हांथ न लगाया लेकिन किरदार खुब निभाया

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इंदौर-मिल मजदूर के परिवार में जन्मे बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी का जन्म 1924 में इंदौर मे हुआ. मिल बंद होने और काम छूट जाने के बाद उनका परिवार मुंबई आ गया. नए शहर की चुनौतियों ने उन्हें भी घेरा और वो बेस्ट की बसों में कंडेक्टर की नौकरी करने लगे और अपने मजाकिया अंदाज से यात्रियो का मनोरंजन करने लगे. कहते हैं रचनात्मकता आपको अकेला नहीं छोड़ती वही जॉनी वॉकर के साथ हुआ.

एक दिन पटकथा लेखक और अभिनेता बलराज साहनी बस से सफर कर रहे थे. तभी उनकी मुलाकात बदरु से होती है. जॉनी वॉकर अनुरोध करते हैं कि क्या मुझे फ़िल्मों में काम मिल सकता है? बलराज आश्वासन देते हैं, कि मैं तुम्हारे लिए कुछ ज़रूर करूंगा. बलराज साहनी जॉनी को हमेशा मिलते रहते थे, ऐसे होता भी है, हमारा अवचेतन मन ऐसे ही होता है जब कुछ व्यक्ति, स्थान, आदि को मन में बिठा ले तो हमेशा नज़र जाती है, जॉनी हमेशा बलराज साहनी को याद दिलाते की सर आपने मेरे लिए कोई बात की, बलराज साहनी ने एक दिन बदरू यानी जॉनी वॉकर को ऐसे ही देखा कि वो शराबियों जैसे झूम रहे हैं, और यात्रियों को शराबियों की स्टाइल में उतरने की घोषणा करते हैं! चूंकि बलराज साहनी अपने दौर के दिग्गज अभिनेता, पटकथा लेखक थे, उन्होंने अंदाजा लगाया कि शायद यह आज भी ऐक्टिंग ही कर रहा है.गुरु दत्त उन दिनों 1951 में देव साहब के नवकेतन प्रोडक्शन के बैनर तले बन रही फिल्म बाज़ी बना रहे थे. इसकी कहानी लिखने का जिम्मा गुरुदत्त साहब ने बलराज साहनी को सौंप रखा था. उन्होंने जॉनी से पूछा तुमने शराब पी रखी है??? जॉनी ने जवाब दिया जी नहीं सर! मैं शराब नहीं पीता मैंने कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाया. ग्रेट बलराज साहनी आश्चर्यचकित हो गए और निश्चिंत हो गए, तब तक उनको बाज़ी के लिए हास्य कलाकार मिल चुका था.

एक दिन बाज़ी फिल्म के किसी सीन के लिए देव साहब गुरुदत्त साहब गहन चर्चा कर रहे थे, तभी अचानक एक शराबी शख्स आया. उसकी हरकतें सभी को चौंकाती है. सब हंस पड़ते हैं.गुरुदत्त साहब थोड़ा नाराज़ पड़ते हैं, कि यह बेवड़ा यहां कैसे आ गया कौन है? टीम के लोग उस व्यक्ति को पकड़ लेते हैं, तभी वो बिल्कुल उन्हें झटकता हुआ सीधा खड़ा हो जाता है, और अपनी पतली आवाज़ में कहता है कि उसने शराब नहीं पी रखी. बदरुद्दीन जलालुद्दीन काज़ी की ये प्रतिभा सबको हैरान कर देती है. बलराज साहनी हसरतों से देख रहे थे, तब उन्होंने गुरुदत्त साहब को बताया कि कभी शराब को हाथ न लगाने वाले बेवड़े को मैं लेकर आया हूं. गुरुदत्त साहब, देव साहब आदि उनकी प्रतिभा देखकर चौंक गए थे. खुश होकर गुरुदत्त साहब अपनी पहली फिल्म में उन्हें मौका दे देते हैं. गुरुदत्त साहब पूछते हैं आपका नाम क्या है? जॉनी वॉकर हंसकर पतली आवाज़ में बोलते हैं ‘बदरु’ गुरुदत्त साहब पूछते हैं अपना पूरा नाम बताओ, ‘बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी’ बताते हैं…. गुरुदत्त साहब हँस पड़े. तब ही उन्होंने अपनी पसंदीदा व्हिस्की ब्रांड के नाम पर बदरु का नाम बदलकर जॉनी वॉकर रख दिया. गौरतलब बात तो ये है कि जॉनी वॉकर ने ताउम्र कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया,लेकिन शराबी की भूमिका में उनके अभिनय को दर्शकों ने खूब पसंद किया.दोनों के कैरिअर (गुरुदत्त साहब और बदरु) की शुरुआत इसी फिल्म से होती है. आगे चलकर गुरु दत्त की हर फिल्म में जॉनी वॉकर एक विशेष भूमिका में नज़र आते रहे.गुरु दत्त की स्पेशल टीम के जॉनी वॉकर एक महत्तवपूर्ण सदस्य थे. गुरु दत्त जिस अभिनेता पर भरोसा जता देते थे. उसे काफी मौके देते थे. पड़े.बाजी ‘फिल्‍म’ में काम करने के बाद बदरुद्दीन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. देखते ही देखते जॉनी वॉकर ने भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार हास्य कलाकारों की फेहरिस्त में नंबर एक पायदान पर कब्जा कर लिया. टैक्सी ड्राईवर में जॉनी वॉकर का किरदार ‘मस्ताना’ काफ़ी लोकप्रिय हुआ लोगों ने कहा कि आप अपना नाम ‘मस्ताना’ रख लीजिए. यह मेरे गुरु गुरुदत्त साहब का दिया उपहार है, इसी पहिचान के साथ जीना चाहता हूं. जॉनी वॉकर ऐसे जवाब देते हुए गुरुदत्त साहब के प्रति आदर भाव व्यक्त करते थे.

जॉनी वॉकर ऐसे अनोखे हास्य कलाकार जिनके लिए हीरो के समानांतर माना गया. अपने दौर के वो ऐसे कॉमिक एक्टर्स में शामिल थे, जिनके लिए खासतौर पर गाने लिखे जाते थे. जॉनी वॉकर की ख्याति का एक विशेष कारण यह भी था कि उनकी हर फिल्म में एक या दो गीत उन पर अवश्य फिल्माए जाते थे, जो काफी लोकप्रिय भी हुआ करते थे. वर्ष 1956 में प्रदर्शित गुरूदत्त की फिल्म सी.आई.डी में उन पर फिल्माया गाना ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, जरा हट के जरा बच के ये है बंबई मेरी जान खूब लोकप्रिय हुए. इसके बाद हर फिल्म में जॉनी वाकर पर गीत अवश्य फिल्माए जाते रहे, यहां तक कि फाइनेंसर और डिस्ट्रीब्यूटर की यह शर्त रहती कि फिल्म में जानी वाकर पर एक गाना होना ही चाहिए. डिस्ट्रीब्यूटर भी फिल्म के राईट लेने से पहले पूछते थे जॉनी वॉकर के ऊपर गाना फ़िल्माया है या नहीं?? जॉनी की विश्वसनीयता शानदार थी, बाज़ार भी उनके ऊपर पैसे खर्च करता था. फिल्म नया दौर में उन पर फिल्माया गाना मैं बंबई का बाबू या फिर मधुमति का गाना जंगल में मोर नाचा किसने देखा उन दिनों काफी मशहूर हुआ. गुरुदत्त तो विशेष रूप से जॉनी वाकर के गानों के लिए जमीन तैयार करते थे. फिल्म मिस्टर एंड मिसेज 55 का गाना जाने कहां मेरा जिगर गया जी या प्यासा का गाना सर जो तेरा चकराए काफी हिट हुआ. इसके अलावे चौदहवीं का चांद का गाना मेरा यार बना है दुल्हा काफी पसंद किया गया.

गुरुदत्त साहब अपनी अधिकतर फिल्मों में जॉनी के लिए किरदार लिखने शुरू कर दिए. वो जॉनी को स्क्रिप्ट थमाते और कहते, ये रही स्क्रिप्ट, ये रहे संवाद, अब इसमें तुम जिस तरह बेस्ट करना चाहो, कर सकते हो, जॉनी वॉकर ने कभी गुरुदत्त साहब को निराश नहीं किया, और अपनी परफॉर्मेंस से जनता का प्यार पाते हुए ऊचाईयों को छूटे रहे. गुरुदत्त साहब के सहयोग एवं विश्वास ने जॉनी वॉकर को निखारा फ़िर जॉनी ने फिल्मी पर्दे पर जो किया वो इतिहास है.मिस्टर & मिसेज 55, मधुमति, प्यासा, सीआईडी, आर – पार, काग़ज के फूल, टैक्सी ड्राइवर, बाज़ी, देवदास, पैगाम, आनंद, मुगल ए आज़म, दुनिया आदि एतिहासिक फ़िल्मों में कालजयी फ़िल्मों में अभिनय करने तक तीन सौ से अधिक फ़िल्मों में अभिनय कर चुके थे. और अपने फिल्मी सफर से बहुत संतुष्ट थे. कोई कसक बांकी न थी.जॉनी वॉकर पर फिल्माए अधिकतर गानों को मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी, लेकिन फिल्म बात एक रात की में उन पर फिल्माया गाना किसने चिलमन से मारा नजारा मुझे में मन्ना डे ने अपनी आवाज दी. जॉनी वाकर ने लगभग दस-बारह फिल्मों में हीरो के रोल भी निभाए। उनके हीरो के तौर पर पहली फिल्म थी पैसा ये पैसा जिसमें उन्होंने तीन चरित्र निभाए. इसके बाद उनके नाम पर निर्माता वेद मोहन ने वर्ष 1967 में फिल्म जॉनी वाकर का निर्माण किया।.

अचानक मद्रास के एक होटल में ठहरे जॉनी वॉकर का फोन बजता है, झकझोर देने वाली ख़बर मिली जॉनी! गुरुदत्त साहब नहीं रहे…जॉनी के जिगरी दोस्त पथप्रदर्शक दिग्गज अभिनेता, दूरदर्शी निर्देशक गुरु दत्त इस फानी दुनिया से रुख़सत कर गए . यह सुनते ही टूट जाते हैं. सुनते ही दोनों आखिरी बार अपने मुक़द्दस सहयोगी गुरु दत्त को देखने मद्रास से बंबई निकल पड़ते हैं. जॉनी वॉकर के साथ वहीदा रहमान भी होती हैं. जॉनी वॉकर के लिए हिन्दी सिनेमा में सबसे अजीज गुरुदत्त साहब ही थे, एक ही ऐसे शख्स थे जिनके लिए जॉनी हमेशा दिल में बेइंतिहा मुहब्बत समेटे आभार मुद्रा में रहे. गुरुदत्त साहब के गुज़र जाने के बाद जॉनी वॉकर की ज़िंदगी में भी अमूलचूल परिवर्तन आए उनको लगा शायद रीढ़ टूट गई. गुरुदत्त साहब का असमय दुनिया छोड़ कर जाना सिनेमा साथियों में देव साहब, जॉनी वॉकर, अबरार अल्वी, आदि के लिए कभी न भूलने वाली क्षति थी.यूँ तो जॉनी वॉकर को उनके काम की वजह से पहचान मिली. फिर तो जॉनी वॉकर को मद्रास यानी की चेन्नई से फिल्म के ऑफर आने लगे. जब वो फिल्म की शूटिंग के लिए मद्रास गए तो एयरपोर्ट पर उन्हें पता चला कि उनके भतीजे की अचानक मृत्यु हो गई है. भतीजे के निधन की खबर सुनकर वो वापस लौट आए. कुछ महीने बीतने के बाद वो फिर से मद्रास पहुंचे तो उन्हें खबर मिली की उनके पिताजी गुजर गए. वो फिर बॉम्बे लौट आए. एक महीने के बाद जॉनी वॉकर ने फिर से मद्रास जाने का विचार बनाया. जब वो मद्रास के होटल रूम में पहुंचे तो उन्हें खबर मिली कि गुरुदत्त साहब नहीं रहे. इस खबर से उन्हें बहुत धक्का लगा. उन्होंने फैसला किया कि वो फिर कभी मद्रास नहीं जाएंगे. इसका असर उनके करियर पर भी पड़ा लेकिन फिर भी वो कभी मद्रास नहीं गए, लेकिन जब उन्होंने साल 1996 में कमल हसन की फिल्म चाची 420 साइन की तो उन्हें बताया नहीं गया था कि इस फिल्म की शूटिंग मद्रास में होने वाली है. लगभग 14 साल बाद उन्होंने मद्रास जाने का फैसला किया. वो फ्लाइट के दौरान डरे हुए बैठे थे कि कहीं मद्रास पहुंचने पर उन्हें कोई बुरी खबर न मिल जाए लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. ये उनके करियर की आखिरी फिल्म थी.

जॉनी वॉकर यूँ तो शराब नहीं पीते थे, उन्होंने कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया, कई बार इस प्रश्न पर जॉनी वॉकर गुस्सा हो जाते थे. लोग पूछते की जॉनी साहब आप शराब का सेवन किए बिना कैसे इतनी अच्छी ऐक्टिंग कर लेते हैं. जॉनी गुस्से में जवाब देते, देव साहब दिलीप कुमार, राज कपूर, राजेश खन्ना आदि से पूछो की कितनी बार फ़िल्मों में मर चुके हैं, क्या असल जीवन में उन्हें मरने का अनुभव भी है?जॉनी वॉकर अंततः जिंदा रहते हुए ही संतृप्त अवस्था को प्राप्त कर चुके थे. 70 के दशक से जॉनी वॉकर ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्मों में कामेडी का स्तर काफी गिर गया है, इसी दौरान ऋषिकेष मुखर्जी की फिल्म आनंद में जॉनी वाकर ने एक छोटी सी भूमिका निभाई. इस फिल्म के एक दृश्य में वह राजेश खन्ना को जीवन का एक ऐसा दर्शन कराते है कि दर्शक अचानक हंसते-हंसते संजीदा हो जाता है.

वर्ष 1986 में अपने पुत्र को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए जॉनी वाकर ने फिल्म पहुंचे हुए लोग का निर्माण और निर्देशन भी किया लेकिन बॉक्स आफिस पर यह फिल्म बुरी तरह से नकार दी गई। इसके बाद जॉनी वाकर ने फिल्म निर्माण से तौबा कर ली।इस बीच उन्हें कई फिल्मों में अभिनय करने के प्रस्ताव मिले लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. बाद में गुलजार और कमल हसन के बहुत जोर देने पर वर्ष 1998 में प्रदर्शित फिल्म चाची 420 में उन्होंने एक छोटा सा रोल निभाया जो दर्शकों को काफी पसंद भी आया. जॉनी वॉकर बताते हैं कि चाची 420 में काम करना आनंददायक था, क्योंकि लोगों के फोन, मेसेज, चिट्ठियां आने लगीं लोग यही पूछते की आप ज़िन्दा हैं तो मैं हंसकर जवाब दे देता हाँ….।साभार-लोक माध्यम

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