गाजीपुर की मीराबाई या महादेवी की के भावनाओं की एक झलक

गाजीपुर- मधु राय गाजीपुर की गुमनाम कवियत्री जो अपने परिवार की देखभाल के साथ समाज, देश और गरीबों ,मजलूमों की पीडा को देख कर जब उनका हृदय द्रवित और व्यथित होता है तो अपनी अकेले पन की सहेली और हमराज डायरी को लेकर बैठ जाती है और अपनी भावनाओं से उसे सिर्फ उसे अवगत कराती है। उन्हें मै आधुनिक युग की मीरा, महादेव वर्मा मानता हुँ,, बडे निवेदन के बाद अपनी भावना का एक अंश मुझे देने को सहमति दिया – प्रस्तुत है – गज़ब है दुनिया,गज़ब है लोग,गज़ब है नियम, गज़ब है सोच।।।
जात पात और ऊंच नीच का,आँकलन है ये,दौलत के टुकड़े।।
आरक्षण आरक्षण का नारा देते,कौन पा रहा है आरक्षण।।
धन कुबेर ही कुंडली मारे,बैठा है हर ओर।।
बुद्धि,ज्ञान, विवेक,डिग्रियां घूम रही ठोकर खाती दर दर की।।
कर्ज़ तले वो दबी जा रही, धन की बलि वेदी पर वो चढ़ी जा रही।।
वाह रे दुनिया,वाह रे तेरे नियम, निरपराधी को अपराधी घोषित कर रहा कानून यहाँ।।
चंद पैसों से मिल जाते गवाह यहाँ।।
चन्द पैसों में मुक्त हो जाते,दोषी दोषमुक्त यहाँ।।
मिल जाता यहाँ, सफेद पोश होने का यहाँ निर्धन पाता कलंक की कालिख़, धनवान यहाँ पाता,निर्दोषी का तमग़ा।।
कानून की देवी ने बांध रखी है,काली पट्टी यहाँ,नियम कानून और क़ायदे सब झूठे है।।
पल पल वो रंग बदलते हैं, दौलत की चकाचौन्ध के आगे,वाह रे नियम वाह कानून,क्या है तेरा रंगरूप।।सधवा पा रही पेंसन लाभ,विधवा घूम रही सरकारी दफ्तर दफ्तर।।
कागज पर चल रही योजना,कागज पर ही मिल रहा लाभ।।
कहां योजना हुई पूर्ण,कहा हुई फलीभूत।।
वाह रे नियम,वाह रे योजना,वाह रे पाठ पढ़ाने वाले लोग।।
खोल ज्ञानचक्षु को देखो तुम,झांको दिल के अंदर,कौन सही है,कौन ग़लत।।
योजनाओं को,रूप देने वाले,या उनको अधर में लटकाने वाले।।
कौन सही है,कौन है ग़लत, झूठी है योजना या झूठे है वो लोग,जो नही पहुँचने देते उनके हक़दारों तक।।
आँखे मूँद जो चलोगे राही,राह सही नही चुन पाओगे।।
करना है समानता का नियम लागू,तो उतार फेंको दौलत का चश्मा।।
देखो समाज की सच्ची तस्वीर,तब अपनी इन नंगी आंखों से,समझ पाओगे कहा हुई है तुमसे भूल।।
समय अभी नही बीता है,पढ़ लो मजबूरों की विवशता के अश्रु धारा का मोल।।
वाह रे दौलत,वाह रे दौलत वाले,कैसे रंग बिरंगे है,तेरे ये नियम।।
देख सके गर सच्चाई को,रच सकोगे एक नया इतिहास।।
वाह रे दुनिया,वाह रे लोग,वाह रे नियम,वाह रे सोच……….