गाजीपुर-प्रचलन से दूर होते ही सर से उतर गया खादी की गांधी टोपी

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गाजीपुर-देश की आजादी में गांधी टोपी व खादी की अहम भूमिका रही है। जब हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हैं तो उनकी गांधी टोपी की जरूर याद आती है। सफेद गांधी टोपी के कारण खादी की भी अपनी विशेष पहचान रही है, लेकिन समय के साथ आए बदलावों ने इसे गुम कर दिया। गांधी टोपी भारत में 1918 से 1921 के दौरान पहले असहयोग आंदोलन में उभरी थी। इसके बाद गांधी टोपी एक लोकप्रिय कांग्रेस पोशाक बन गई। 1921 में ब्रिटिश सरकार ने गांधी टोपी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास भी किया। स्वयं गांधी ने 1920 से 1921 के दौरान केवल एक या दो साल के लिए यह टोपी पहनी थी। गांधी के पारंपरिक भारतीय परिधानों की घरेलू खादी पोशाक उनके सांस्कृतिक गौरव के संदेश, स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग भारत की ग्रामीण जनता के साथ-साथ आत्मनिर्भरता और एकजुटता का प्रतीक थी। गांधी के अधिकांश अनुयायियों और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों के लिए टोपी आम हो गई। कभी नेताओं की पहली पसंद रही खादी के कपड़ों व गांधी टोपी की मांग आज नहीं के बराबर है। इस समय इक्के दुक्के लोगों के सर पर गांधी टोपी दिखती है। गांधी टोपी और स्वदेशी खादी राजनीति कर रहे नेताओं को रास नहीं आ रही है। गांधी टोपी कांग्रेस सेवादल के ड्रेस कोड में शामिल है। जब भी किसी बड़े नेता या मंत्री को कांग्रेस सेवादल की सलामी लेनी होती है तो उनके लिए चंद लम्हों के लिए ही सही गांधी टोपी की व्यवस्था की जाती है। सलमी लेने के तुरंत बाद नेता टोपी उतारकर अपने अंगरक्षक की ओर बढ़ा देते हैं। आज एक बार फिर राजनीतिक पार्टियों में टोपी प्रचलन में आया है पर राजनीतिक दलों में खादी की सफेद गांधी टोपी कहीं नजर नही आती है सभी पार्टियां अपने झंडों के कलर में रंगीन टोपी अपने नेताओं सहित कार्यकर्ताओं को पहनाते है। गांधी आश्रम के खादी भंडार से गांधी टोपी और खादी के पैजामा कुर्ता आउट ऑफ स्टॉक हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहनावे और प्रेरणा से जरूर खादी के कपड़ों के दिन बहुरे है लोग खादी कपड़ों से पैंट शर्ट और कोट पैंट के साथ डिजायनर कपड़े बनवा रहे है।जिससे खादी कपड़ों की बिक्री बढ़ी है।

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