वाराणसी-अंततः वही हुआ जिसकी लोगों को आशंका थी- तेजबहादुर प्रकरण

वाराणसी-अंततः वही हुआ जिसकी आशंका अधिकांश लोगों को पहले से थी। बीएसएफ से बर्खास्त तेज बहादुर का वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना प्रारंभ में तो लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन जैसे-जैसे समय ब्यतीत होता गया बीएसएफ से बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव के संघर्ष में पूर्व सैनिक और समाजसेवी जुड़ते गए। तेज बहादुर की उम्मीदवारी जोर पकड़ती चली गई। तेज बहादुर ने सबसे पहले निर्दल प्रत्याशी के रूप में वाराणसी लोकसभा सीट से अपना नामांकन किया। निर्दल प्रत्याशी के रूप में नामांकन के समय तेज बहादुर ने अपने नामांकन पत्र में सेना से बर्खास्तगी का कारण भ्रष्टाचार बताया लेकिन समाजवादी पार्टी द्वारा जब तेज बहादुर को अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया गया तो इसके बाद उन्होंने जो नामांकन पत्र दाखिल किया उस नामांकन पत्र में सेना से बर्खास्तगी का कारण नामांकन पत्र में नहीं बताया। इसी को आधार बनाकर निर्वाचन अधिकारी ने उनसे 01-05 201 को प्रात 11:00 बजे तक स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया था। तेज बहादुर ने जो भी उचित समझा अपना स्पष्टीकरण दिया ।लेकिन इसके बाद भी निर्वाचन विभाग ने कहा कि आप नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट प्रस्तुत करें इस संदर्भ में तेज बहादुर का कहना था कि जम्मू कश्मीर से जाकर के अनापत्ति प्रमाण पत्र ले आना 12 घंटे के अंदर संभव नहीं है। अंततः नाटक का पटाक्षेप आज हो गया जब निर्वाचन विभाग ने जानकारी छुपाने का आरोप लगाते हुए तेज बहादुर का नामांकन पत्र निरस्त कर दिया। तेज बहादुर के नामांकन को निरस्त करने के फैसले को भारतीय जनमानस कैसे देख रहा है, इसे आप सोशल मीडिया पर लोगों की ब्यक्त प्रतिक्रियाओं से बखूबी देख सकते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचकों को बैठे बिठाए ही यह कहने का मौका मिल गया कि भारत निर्वाचन आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है या असली चौकीदार से नकली चौकीदार डर गया। वैसे यह मामला यही थम जायेगा ऐसा लगता नहीं है क्योंकि तेजबहादुर ने मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाने का एलान किया है।

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