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लखनऊ:DNA शब्द को लेकर अखिलेश यादव बनाम बृजेश पाठक

लखनऊ:दो दिन पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने समाजवादी पार्टी के डीएनए को लेकर एक टिप्पणी कर दिया था, पाठक जी के टिप्पणी से सपा के कार्यकर्ता काफी आगबबूला हो कर पाठक जी के डीएनए पर सवाल खड़ा करते हुए सोशल मीडिया पर काफी अनाप-शनाप लिखने लगे। इसके बाद अखिलेश यादव ने अपने ट्विटर हैंडल पर जो लिखा है हम शब्दशः: पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं “”हमने उप्र के उप मुख्यमंत्री जी की टिप्पणी का संज्ञान लेते हुए, पार्टी स्तर पर उन लोगों को समझाने की बात कही है जो समाजवादियों के डीएनए पर दी गयी आपकी ‘अति अशोभनीय टिप्पणी’ से आहत होकर अपना आपा खो बैठे। आइंदा ऐसा न हो, हमने उनसे तो ये आश्वासन ले लिया है लेकिन आपसे भी यही आशा है कि आप जिस तरह की बयानबाज़ी निंरतर करते आये हैं उस पर भी विराम लगेगा। आप जिस स्तर के बयान देते हैं वो भले आपको अपने व्यक्तिगत स्तर पर उचित लगते हों लेकिन आपके पद की मर्यादा और शालीनता के पैमाने पर किसी भी तरह उचित नहीं ठहाराये जा सकते हैं ।

एक स्वास्थ्य मंत्री के रूप में आपसे ये अपेक्षा तो है ही कि आप ये समझते होंगे कि किसी के व्यक्तिगत ‘डीएनए’ पर भद्दी बात करना दरअसल किसी व्यक्ति नहीं वरन् युगों-युगों तक पीछे जाकर उसके मूलवंश और मूल उद्गम पर आरोप लगाना है। जैसा कि सब जानते हैं कि हम यदुवंशी हैं और यदुवंश का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से है अतः ऐसे में आपके द्वारा हमारे डीएनए पर किया गया प्रहार धार्मिक रूप से भी हमें आहत करता है। हम जानते हैं कि आपका धर्म-प्रधान व्यक्तिक्त ऐसा नहीं है कि वो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति ऐसी दुर्भावनापूर्ण टिप्पणी कर सकता है परंतु एक सामान्य भोला व्यक्ति जो भगवान श्रीकृष्ण ही नहीं बल्कि किसी भी भगवान में विश्वास करता है वो आपकी टिप्पणी को अन्यथा भी ले सकता है। ऐसे में आपसे आग्रह है कि राजनीति करते-करते न अपनी नैतिकता भूलिए और न ही धर्म जैसी संवेदनशील भावना को जाने-अंजाने में ठेस पहुंचाइए।

आशा है आप अपनी टिप्पणी के लिए अपने अंदर बैठे हुए उस अच्छे इंसान से क्षमा माँगेंगे, जो पहले ऐसा न था। आप यदि एकांत में बैठकर अपने विगत वर्षों के व्यवहार, विचार और व्यक्तित्व का निष्पक्ष अवलोकन-आलोचन करेंगे तो पाएंगे कि मूल रूप से आपके विचारों में पहले कभी भी ऐसा विचलन न था, न ही आपकी राजनीतिक आकांक्षाएं ऐसी थीं कि आप व्यक्तिगत स्तर पर आदर्श को भूल जाएं और अपना शाब्दिक संतुलन खो बैठें। आशा है इस बात को यहीं ख़त्म समझा जाएगा और राजनीति की शुचिता को बचाए-बनाए रखने के लिए आप नकारात्मक राजनीति की संगत से यथोचित दूरी बनाकर अपने विवेक और विचार को पुनः सही दिशा की ओर मोड़ेंगे। एक जनसेवक होने के नाते हम सबके पास जनसेवा के लिए वैसे भी समय हमेशा कम रहता है, ऐसे में व्यर्थ के विषयों में न उलझकर हमें सकारात्मक राजनीति के उद्देश्यों पर अडिग रहकर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

शुभेच्छा!

बृजेश पाठक ने अखिलेश यादव को अपनी टिप्पणी का अभिप्राय समझाते हुए अपने ट्विटर अकाउंट पर क्या कहा है कृपया शब्दशः देखें::अखिलेश यादव जी, आप डीएनए के सवाल पर बहुत भड़के हुए हैं। मैने ये कह क्या दिया कि समाजवादी पार्टी के डीएनए में ख़राबी है, आप आपे से उसी तरह बाहर हो गए जैसे दस साल पहले यूपी की सत्ता से बाहर हो गए थे। आप इस बात को समझिए कि डीएनए में खराबी से हमारा मतलब किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि आपकी पार्टी की राजनीतिक सोच से है। डीएनए में खराबी का मतलब ये है कि आपकी पार्टी की राजनीति की बुनियाद ही जातिवाद और तुष्टीकरण पर टिकी रही है और आज भी टिकी हुई है। समाजवादी पार्टी ने कभी सबका साथ-सबका विकास की बात की ही नहीं। आपकी प्राथमिकता ही हमेशा वोटबैंक की राजनीति रही है, नीतियों और आदर्शों से आपका दूर दूर तक का लेना देना नहीं रहा है। 

मैं आपकी पार्टी के डीएनए में खराबी के मसले को और खुलकर समझा देता हूं। दरअसल मुस्लिम तुष्टिकरण ही आपकी राजनीति का केन्द्रीय हिस्सा रहा है। आप किसी भी राजनीति विज्ञानी से बात कर लें। वो आपको समझा देगा कि आपकी पार्टी का जन्म ही मुस्लिम तुष्टीकरण के डीएनए के साथ हुआ है और आपकी पूरी की पूरी राजनीति की दाल-रोटी भी यही है।  वो चाहे शिक्षा नीति हो, नियुक्तियाँ हों या कानून-व्यवस्था के सवाल, आपकी सरकारों ने बार-बार एक ही वर्ग विशेष को खुश करने के लिए बाकी समाज की अनदेखी की है। इससे समाज में विभाजन और अविश्वास की खाई और गहरी हुई है। आपने तो बतौर मुख्यमंत्री अपने सिगनेचर से आतंकियों से जुड़े 14 केस एक साथ वापिस लिए हैं ताकि आपकी पार्टी के मुस्लिम तुष्टीकरण वाले डीएनए को खाद पानी मिलता रहे। ऐसे में मैं अच्छी तरह समझा सकता हूं कि डीएनए पर सवाल उठाने से आप इतने तिलमिलाए क्यों हैं। आपको इतना दर्द क्यों हैं।

आपकी पार्टी का डीएनए तो दलितों के भी खिलाफ रहा है। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में बार-बार देखा गया कि दलितों के अधिकारों को कुचला गया, उन्हें राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखा गया, और उनके साथ अन्याय की घटनाओं में वृद्धि हुई। यह सिर्फ प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक गहरी राजनीतिक मानसिकता को दर्शाता है।

अखिलेश जी, इसलिए जब हम कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के डीएनए में ख़राबी है तो हमारा सीधा मतलब है कि यह पार्टी सत्ता के लिए समाज को बाँटने में यक़ीन रखती है। जाति, धर्म और वर्ग को देख कर राजनीति करती है। इसलिए आप कुपित न होइए। हो सके तो खुद को और अपनी पार्टी की सोच को बदलने की कोशिश कीजिए। एक बात और, आपका और आपकी पार्टी का ट्विटर हैंडल जो भी चलाता है और जो भी आपको बड़े बड़े पैराग्राफ वाले बयान लिखकर भेजता है, वो तो इतना नादान है कि उसने आपके जरिए ये कुबूल करवा लिया कि जेपी, लोहिया और राजनारायण जैसे महान नेताओं के समाजवाद को गंदी, पतित और कलुषित गालियों में तब्दील कर देने वाले ये लोग आपके अपने ही हैं। आपने खुद लिखित रूप में ये कुबूल कर लिया है कि आप पार्टी स्तर पर उन लोगों को समझाएंगे। अब भी कोई शक, कोई संदेह बचा क्या कि आपकी पार्टी का डीएनए ही खराब है?

अखिलेश जी, अंत में यही कहूंगा कि अगर आप बदल सकते हैं तो खुद को बदलिए, अपनी पार्टी के डीएनए को बदलिए वरना आज से लेकर 2027 तक और उसके बाद भी आपको अपनी पार्टी का यही डीएनए परेशान करता रहेगा। अभी तो मैं कह रहा हूं, इसके बाद प्रदेश की एक एक गली से, एक एक मोहल्ले से, एक एक गांव, शहर, ज़िले और यहां तक कि एक एक आम व्यक्ति की जुबां से आपकी पार्टी के इस डीएनए का जिक्र फूटेगा। किस किस को गालियां देते फिरेंगे आप? सो अपना चेहरा साफ कीजिए, आईने से मत झगड़िए। 

“उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पे थी आइना साफ़ करता रहा।”सादर