लखनऊ: आपातकाल को लेकर समाजवादी पार्टी का ताजा ट्वीट

लखनऊ,26 जून 2025: 25-26 जून 1975 की रात्रि इतिहास का काला अध्याय है। पांच दशक पहले देश में तानाशाही थोपने के साथ आपातकाल लगाकर संवैधानिक संस्थाओं को निष्क्रिय करते हुए तमाम मौलिक अधिकारों को भी छीन लिया गया था। समाजवादियों ने जैसे आजादी की लड़ाई में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई थी वैसे ही लोकतंत्र, संविधान और नागरिक आजादी बचाने के लिए भी आगे बढ़कर संघर्ष किया है।
आपातकाल के दौरान सर्वश्री जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, मधुलिमए, राजनारायण और मुलायम सिंह यादव की गिरफ्तारी हुई। देश भर में हजारों लोगों को भी इसलिए जेल में ठूंस कर उन्हें भयंकर यातनाएं दी गई क्योंकि वे दूसरी आजादी के लिए आवाज उठा रहे थे।
लोकतंत्र बहाली का सपना 1977 में पूरा हुआ। लेकिन भारत की राजनीति में उसके बाद जो तब्दीली आई उससे फिर एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। तब भी नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए थे। आज भी नागरिक अधिकारों पर खतरे के बादल मंडरा रहे है। संविधान संकट में है, भारत की विविधता पर हमले हो रहे हैं। संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। भारत के संविधान में जिस संघीय ढांचे की कल्पना है उसे मिटाने के प्रयास हो रहे है। सत्ता का दुरूपयोग कर प्रशासकीय ढांचे को प्रतिबद्धता की जंजीरों में कैद किया जा रहा है। भाजपा के लोकतंत्र का प्रतीक बुलडोजर हो गया है।
आपातकाल की चर्चा के आड़ में भाजपा खुलेआम भ्रम फैला रही है। संचार माध्यमों से बीजेपी के योगदान के विषय में झूठा संदेश प्रसारित किया जा रहा है। ऐसे में समाजवादी विचारधारा के नायकों जिनका लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है उनकी विरासत और इतिहास की सही जानकारी मिलना बेहद जरूरी है। बीते एक दशक में जिस प्रकार सत्ताधारी दल ने देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर कुछ नायक और प्रतीक गढ़े है इसकी सच्चाई उजागर करने के लिए संविधान की सर्वोच्चता और सम्मान को स्थाई रूप दिये जाने के लिए सतत जन जागरूकता अभियान चलाए जाना समय की मांग है।
सन् 2012-17 तक समाजवादी सरकार में बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जनकल्याण की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिए इसके साथ ही लोकतंत्र के प्रति अपनी सकारात्मक दृष्टि और सोच को भी कुछ फैसलों से स्पष्ट किया। समाजवादी सरकार में ही अखिलेश यादव ने जेपीएनआईसी के रूप में एक ऐसे सेंटर की स्थापना किया जिससे नई पीढ़ी सहित देश दुनिया के लोग लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन संघर्ष से परिचित होते हैं और लोकतंत्र के लिए अपने जीवन को ही दांव पर लगाने वाले सेनानियों की महान यात्रा को आडियो विजुअल रूप में देख और सुन सके। लेकिन भाजपा सरकार ने राजनीतिक द्वेषवश इस स्मारक पर ताला जड़ दिया है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उनकी मूर्तिपर माल्यार्पण के लिए तमाम सरकारी बाधाएं खड़ी करने के बावजूद भी श्री अखिलेश यादव ने गेट फांदकर स्मारक में स्थापित जेपी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया।
तत्कालीन समाजवादी सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सुझाव पर लोकतंत्र को बचाने के लिए संघर्ष में जिनकी भागीदारी थी उनको सम्मानित करने का काम भी प्राथमिकता से हुआ। इस कार्य की जिम्मेदारी तत्कालीन खाद्य रसद, जेल एवं राजनैतिक पेंशन मंत्री राजेन्द्र चौधरी को सौंपी गई। उन्होंने आपातकाल में जेल गए लोकतंत्र सेनानियों के योगदान का सम्मान करते हुए उनके लिए उत्तर प्रदेश लोकतंत्र सेनानी सम्मान अधिनियम 2016 बनाया। उसमें उन्होंने प्रतिमाह रोडवेज की सभी बसों में एक सहयोगी के साथ निःशुल्क यात्रा, निःशुल्क चिकित्सा, निधन होने पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार और आश्रित को भी पेंशन के लिए कानून बनाया। इन दिनों लोकतंत्र सेनानियों को 20 हजार रुपये प्रतिमाह सम्मान राशि मिल रही है।
लोकतंत्र रक्षक सेनानी राजेन्द्र चौधरी आपातकाल के स्वयं भुक्तभोगी हैं। जेपी मूवमेंट के दौरान लोकतंत्र के लिए संघर्ष में जहां एक ओर उन्होंने छात्रों, नौजवानों के अधिकारों के लिए धरना, विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया वहीं दूसरी ओर चौधरी चरण सिंह के निर्देश पर 1974 में भारतीय क्रांति दल के सिंबल पर गाजियाबाद से उन्होंने चुनाव भी लड़ा।
25 जून 1975 को आपातकाल लगने के कुछ घंटे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण की दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में अपने सहयोगियों के साथ राजेन्द्र चौधरी भी शामिल हुए। इमरजेंसी लगने के बाद तत्कालीन भारतीय लोकदल के युवा संगठन के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र चौधरी ने अपने साथियों के साथ ‘प्रतिरोध‘ पत्रिका का प्रकाशन किया। कुछ अंक निकलने के बाद ‘प्रतिरोध‘ पत्रिका पर प्रतिबंध लग गया और पुलिस ने उसके अंक जब्त कर लिए। आपातकाल के विरोध में एक दर्जन साथियों के साथ राजेन्द्र चौधरी की अगुवाई में प्रदर्शन पर पुलिस ने उन्हें अपमानित करने के लिए हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार कर जेल भेजा। यह तब जब वे उस समय एमए एलएलबी कर चुके थे और विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके थे। इमरजेंसी के बाद 1977 में चौधरी चरण सिंह के लोकदल से कम उम्र के विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे।
मौजूदा समय में समाज के अंतिम व्यक्ति की मानवीय गरिमा को सुरक्षित रखने के साथ समतामूलक, शोषणविहीन, लोकतंत्र बनाए रखने में श्री अखिलेश यादव का नेतृत्व बेहद कारगर साबित हो रहा है। पूरे देश में अधिनायकशाही के खिलाफ सबसे प्रखर आवाज अखिलेश यादव की सुनाई और दिखाई दे रही है। बीते कुछेक वर्षों से जिस प्रकार संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान को कमजोर करने का दुष्चक्र रचा जा रहा है उसके खिलाफ समाजवादी पार्टी ने पुरजोर आवाज दी है।
बीते वर्ष सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के पूर्व जब बाबा साहब के संविधान के साथ छेड़छाड़ की कई घटनाए प्रकाश में आने लगी ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के निर्देश पर न केवल राजधानी लखनऊ के प्रदेश कार्यालय में अपितु प्रदेश के सभी जिलों के समाजवादी पार्टी जिला कार्यालयों में ‘संविधान मानस्तम्भ‘ स्थापित किया गया। यह कार्यक्रम जारी है, अब 26 जुलाई 2025 को भी इस तरह के आयोजन होंगे।
यह तो सर्वविदित तथ्य है कि लोकतंत्र बहाली के संघर्श और आपातकाल के विरोध में उत्तर प्रदेश ने अपनी महती भूमिका निभाई थी। प्रदेश के नेतृत्व को ही तब सबसे ज्यादा प्रताड़ित, अपमानित किया गया था। इसीलिए जब अब फिर देश के समक्ष नई चुनौती खड़ी हुई है तो उत्तर प्रदेश ने ही फिर अगुवाई का मन बनाया है। यह सभी मानते और जानते है कि देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी नेतृत्व में लोकतंत्र के मूल्य बचाने और जनता के अधिकारों के लिए सबसे मुखर आवाज श्री अखिलेश यादव की है।
(प्रस्तुतिः समाजवादी पार्टी, उत्तर प्रदेश)