Ghazipur तवायफों का गांव बसुका रंगदारी के लिए विवादों में

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गाजीपुर-सैकड़ों वर्ष पूर्व काशी और पटना के मध्य एक महफिल सजती थी।जहां बड़े-बड़े लोग नृत्य कला का आनंद लेने जाते थे।यह स्थान ग़ज़ल और ठुमरी कला से इस स्थान की पहचान अलग थी। इस जगह को कभी द विलेज आफ तवायफ यानी तवायफों का गांव भी कहा जाता था। यह आसपास के जनपदों में बसुका के नाम से विख्यात हुआ। कला संगीत से हमारे समाज का सदियों से अटूट सम्बंध रहा है, लेकिन यह तब तक सही था जब तक इसमें अश्लीलता ना हो। क्योंकि समाज में अश्लीलता को सबसे निम्न स्थान दिया गया है।कद्रदानों की कमी और आधुनिकता के चलते आज यह परंपरा लगभग लुप्त प्राय होती जा रही है।कहा जाता है कि गाजीपुर जनपद के बसुका गांव में नाचने और गाने वाली तवायफ को बसाने का सिलसिला नवाबों के जमाने में शुरू हुआ था। जब इलाके के रईस अपना दिल बहलाने के लिए कोठों पर जाया करते थे। तवायफों से उस समय संबंध रखना रईसी की निशानी मानी जाती थी।कोठों पर जवान होने वाली लड़कियों को इंतजार उस कद्रदान का होता था जो इनकी नथ को उतार कर इनकी जीवन पर्यंत सभी जिम्मेदारियां लेता था।नथ उतारने के लिए कद्रदान को एक किमत चुकानी पड़ती थी। इस तरह से अपने हुस्न और हुनर से रईसों का दिल बनाया करती थी और बदले में कद्रदान उनका सारा खर्चा उठा करते थे। किंतु वक्त बदलने के साथ तवायफों रवायतों में भी फर्क आया।अब न रईस रहे न जमीदारों की जमीदारी।धीरे-धीरे तवायफों के कद्रदानों में कमी आती गई।

दरअसल सामाजिक आधार पर इस गांव को समझने की जरूरत है।पहले मूल बसुका गांव से आज की तवायफों की बस्ती से काफी दुर थी लेकिन जैसे-जैसे बसुका गांव की आबादी बढ़ती गयी दोनों काफी करीब होते गये।आनेवाले कद्रदानों के द्वारा पता पुछने तवायफों द्वारा बसुका बताने पर यह गांव तवायफों के गांव के नाम से मसहूर हो गया जबकि आज भी मूल गांव में काफी संभ्रांत लोग रहते है। मूलतः तवायफों की बस्ती बसुका गांव के मौजा मे ही पडती है। जानकारी के अनुसार बसुका गांव की आबादी करीब 20,000 है और तवायफों की एक बस्ती गांव से पश्चिम तरफ है वह कुल आबादी का मात्र 4% हिस्सा है। यानि कहने को तो यह गांव तवायफों के गांव के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन सत्य यह है कि बसुका को तवायफों का गांव नहीं कहा जा सकता, क्योंकि गांव के करीब 96 फ़ीसदी लोगों का संबंध तवायफों के पेशे नहीं है।पिछले दिनों नृत्य करने वाली इन महिलाओं मामला पहले गाहमर थानाध्यक्ष के पास पहुंचा, इसके बाद मामला उप जिलाधिकारी सेवराई के पास पहुंचा तो वहां इन्होंने एसडीएम को अपने नृत्य गाने का लाइसेंस दिखाया। इसके बाद उपजिलाधिकारी ने इन्हें नाच और गाने की अनुमति प्रदान कर दी। लेकिन वही कोतवाली गहमर और उप जिलाधिकारी के दरबार मे इन्होंने ग्राम प्रधान के द्वारा रंगदारी मांगने का संगीन आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा रंगदारी देने से इनकार करने पर ग्राम प्रधान हम लोगों के ऊपर अपने कुछ गुर्गों के साथ वेश्यावृत्ति का आरोप लगा रहा है। उप जिलाधिकारी ने उनके नृत्य व गायन के लाइसेंस को देखने के बाद उन्हें अपनी नृत्य कला को चालू रखने का इजाजत दे दिया। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार सेक्स वर्कर को प्रताड़ित न करने की बात कही गई है अब जाहिर सी बात है कि ये महिलाएं नृत्य कला की बात कर रही है और वर्तमान ग्राम प्रधान पर रंगदारी नहीं मिलने के कारण अपने समर्थकों के साथ वेश्यावृत्ति का आरोप लगा रहे हैं। अब ग्राम प्रधान को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पता है कि नहीं यह तो वहीं जाने।लेकिन सवाल यह है कि आखिर ग्राम प्रधान चाहते क्या है ? दरअसल ग्राम प्रधान व स्थानीय जनता का कहना है कि जैसे ही किसी स्कूल के बगल में शराब की दुकान नहीं हो सकती इसका छोटे बच्चों के ऊपर गलत प्रभाव पड़ता है वैसे ही तवायफओं का अपना काम गांव से बाहर करना चाहिए।हम नए भारत में आगे बढ रहे हैं हम बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं। गांव के लड़के /लड़कियां टॉप कर रहे हैं।हम चाहते हैं कि हमारे यहां के बच्चे डॉक्टर,इंजीनियर व अधिकारी बने।अगर यहां ऐसा काम ये लोग करेंगे तो इस गांव का कभी विकास नहीं हो पाएगा। यह पूरा मामला कैसे शुरू हुआ इसको समझते हैं। जब हमारी टीम बसुका गांव पहुंची तो असली कहानी तब समझ में आई ।स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां नाचने, गाने और मुजरे के पीछे देह व्यापार का धंधा चलता है। रात को दूरदराज से लोग यहां आते हैं ,शराब के नशे में आते जाते गांव के लोगों से अभद्र व्यवहार करते हैं। किसी भी दरवाजे पर अराजकता फैलाते हैं, रात किसी के भी दरवाजे को पीटने लगते हैं और लड़कियों को भी छोड़ते हैं। यही नहीं ग्राम प्रधान और अन्य गांव वालों का आरोप है कि जो लोग नाच गाना करती हैं उनमें कई तवायफ हैं अश्लील वीडियो बनाती हैं और उसे मोबाइल पर भेजती हैं। इस वीडियो में शारीरिक संबंध बनाने की वजह से गांव की बदनामी हो रही है। गांव वालों का कहना है कि यह तवायफें सक्षम है इनके बड़े-बड़े मकान हैं, कई गाड़ियां हैं, गांव के बाहर दुकानें हैं जिसको इन्होंने किराए पर दे दिया है। बड़े शहरों में इनके फ्लैट भी है।इनके सामने रोजी रोजगार का कोई संकट नहीं है। गांव वालों का कहना है कि हम चाहते हैं कि ये समाज की मुख्यधारा से जुड़े। गांव वाले कहते हैं कि हमें इनके लिए फंड जूटायेगें इनके बच्चों को अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करेंगे।हमे चिंता इस बात की है कि इनके घरों में भी बच्चियां जवान हो रही हैं और उन बच्चियों के भविष्य से ये खिलवाड़ कर रही हैं। इसे रोकना जरूरी है। नाचना और गाना गलत नहीं है लेकिन समाज में अश्लीलता फैलाना गलत है।अब इन सब को छोड़कर इन्हें आगे बढ़ना चाहिए। हमारा संविधान और कानून हमें स्वतंत्रता का अधिकार देता है और बसुका गांव के लोगों के स्वतंत्रता से ये हम खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं। उनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ उन्हें नये भारत से जोड़ना छोड़ना चाहते हैं।बसुका गांव के तवाफों से संपर्क करने की कोशिश किया गया लेकिन उन्होंने आन रिकार्ड कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।वैसे इतिहासकारों के अनुसार जब वहां तवायफों की बस्ती कद्रदानों ने बसाया तो वहां किसी अन्य का कोई अस्तित्व नहीं था लेकिन कुछ वर्षों बाद वहां मुस्लिम नटों ने धीरे-धीरे अपना आशियाना बनना शुरू किया। बाद में वहां बहुत बडा गांव बसुका बन गया।साभार-एबीटी न्यूज

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