Ghazipur news:यदि बाजरे की ढुंढी नही खाया तो आईये हम बनाना बताते है

गाजीपुर- क्या आप जानते हैं कि बाजरे की ढुंढी कैसे बनती है ? क्या आपने इसके लाजबाब स्वाद को चखा है ? यदि नहीं तो आईये हम आप को आज बताते है बाजरे की ढुंढी कैसे बनती है।आगे बढने से पहले आपको यह जानना जरूरी है कि बाजरे की ढुंढी और बाजरे के लड्डू मे मूलभूत अन्तर कया है।बाजरे की ढुंढी बनने के लिये सबसे पहले साबूत/खडे बाजरे को भून लेते है और इसके बाद इसे पीस कर आंटा बनाते है।बाजरे का लड्डू बनने के लिए बाजरे के आंटे को भून कर लड्डू बनाते है। आपको वर्तमान समय से 3 दशक पूर्व के समय में लेकर चलते है जब मकर संक्रांति से 1 माह पूर्व ग्रामीण महिलाएं मकर संक्रांति की तैयारी जमके करती थी। उन दिनों गांव में भड़भूजे बिरादरी की महिलाएं भरसांय जलाया करती थी।देहाती/ ग्रमीण महिलाएं बडे-बडे टोकरे मे बाजरा भरकर ले जाती थी और उन्हें वहां से भूनवाकर घर लाती थी। घर लाने के बाद बाजरे के आटे में छोटे-छोटे टुकड़ों मे गरी, मुनक्का और देशी घीआदि डालकर दोनों हाथों से मिला देती थी।इसके बाद गुड/खांड/राब को बाजरे के भूनें हुए आंटे मे डालकर अच्छे तरह हाथों से मिक्स कर बडे-बडे ढुंढी (लड्डू) बनाया करती थी। यह इतना टेस्टी होता था कि आज भी उसका स्वाद जिन लोगों ने खाया है उन्हें खूब अच्छी तरह से याद होगा।पाठकों के दिमाग में एक सवाल बार-बार उठ रहा होगा कि आखिर इतना ढुंढी या लड्डू बनाकर गांव वाले करते क्या थे तो इसका उत्तर हम आप बता दें कि उस समय यह प्रथा बहुत ज्यादा प्रचलित थी कि हर परिवार अपने बहू,बेटियों,बहनों के घर खिचड़ी भेजने के नाम पर बड़े-बड़े बोरों में टोकरों में भर भर कर पहुंचाया करते थे।पहुचाते तो आज भी है लेकिन अब यह एक फारमेल्ट/औपचारिकता भर रह गयी है। आज भी 40 वर्ष से ऊपर के लोगों को निश्चित तौर से ग्रामीण अंचलों का ढुंढी और ढुंढा अवश्य याद होगा।