गाजीपुर-कम हो गये देशद्रोही पत्रकार

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गाजीपुर-आज फिर मेरी बातूनी मिंया से विक्की के चाय की दुकान पर मुलाकात हो गयी।बातूनी भाई काफी गुस्से में लग रहे थे।दुआ सलाम के बाद हम दोनों चाय की चूस्की ले रहे , अचानक बातूनी भाई ने मेरे उपर सवाल की मिसाइल दागते हुए बोले पत्रकार भाई क्या अर्नव गोस्वामी की महाराष्ट्र सरकार द्वारा गिरफ्तारी उचित है ? मुझे सवाल का जबाब देते नहीं बन रहा था लेकिन जबाब देने मेरी मजबूरी थी सो मैने कहा बातूनी भाई अर्नव जी भाजपा और शिवसेना के राजनैतिक खेल में फुटबॉल बन गये है। जिस तरह से उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के वर्तमान मुखिया को ललकारा और चुनौती दिया उसका परिणाम तो उन्हें भूगतान ही था। अभी मै उनके पहले सवाल का पुरा जबाब दे भी नहीं पाया था कि उन्होंने दुशरा सवाल दागते हुए कहा कि क्या विनोद दुआ जैसा पत्रकार देश द्रोही हो सकता है ? मैने तुरंत कहा नहीं।मेरे खामोश होते ही बातूनी मियां ने अपने ज्ञान का पिटारा खोलते हुए कहा कि मिंया जब हमारे देश पर अंग्रेजी हुकूमत थी तो उसने 1870 मे देशद्रोह कानून लाई थी। वह कानून आज भी बदस्तूर जारी है। इस कानून यानि आईपीसी की धारा 124-A के अनुसार ” अगर कोई भी व्यक्ति सरकार विरोधी सामाग्री लिखता है या बोलता है या ऐसी सामाग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है , तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा़ हो सकती है। मैने बातूनी भाई कि बातों को गंभीरता पुर्वक सुनकर उनसे सवाल किया कि बातूनी भाई सरकार और देश तो मेरे हिसाब से दो चीजें है ? इसके बाद बातूनी भाई ने विक्की को दो चाय और लाने को कहा और उसके बाद फिर शुरू हो गये। उन्होंने मुझे समझते हुए कहा पत्रकार मिंया जनता अपने मताधिकार से हर पांच साल पर सरकार बदल देती है लेकिन देश अपनी जगह पर स्थिर रहता है। अपनी बात को आगे बढाते हुए बातूनी मिंया ने मुझे पुछा जानते हो पहला देशद्रोही पत्रकार कौन था ? मेरे द्वारा नकारात्मक मूंडी हिलाने पर उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी पहले देशद्रोही पत्रकार/लेखक थे।उन्होंने उस समय की चर्चित पत्रिका यंग इण्डिया में एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने अंग्रेज सरकार की आलोचना किया था और इस काननू के तहत उन पर मुकदमा दर्ज हुआ था। अंग्रेजों ने अपने देश मे इस कानून को काफी पहले ही रद्दा कर दिया लेकिन यह कानून भारत में आज भी लागू है। सरकारें आती रही जाती रही और हर राजनैतिक दल इस कानून की तलवार से अपने राजनैतिक विरोधी और सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को ठिकाने लगाती रही। वैसे माननीय सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में कह चूकी है कि ” सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है ”

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