यहां आयेदिन होता है मौत के साये मे सफर
र्गाजीपुर- बिहार के सीमावर्ती गांव बारा व गहमर के लोग जान हथेली पर रखकर जर्जर नावों के सहारे नदी पार कर अपने खेतों में जाते हैं। गंगा इस पार के बारा और गहमर के लोग गंगा उस पार खेतों में कार्य व पशुओं के लिए चारा लाने के लिए प्रतिदिन नाव का सहारा लेते हैं। यही नहीं कमसार-ओ- बार इलाके के हजारों लोगों की रिश्तेदारियां गंगा उस पार के मुहम्मदाबाद क्षेत्र व बलिया जिले के गांवों में है। लंबे अरसे से क्षेत्रीय लोग गंगा में पीपा पुल बनाने की मांग कर रहे हैं। पीपा पुल निर्माण के बाद कमसार – ओ – बार का इलाका मुहम्मदाबाद क्षेत्र के दर्जनों गांवों के साथ-साथ बलिया जनपद से भी जुड़ जाएगा। घंटों का सफर मिनटों में बदल जाएगा। गंगा इस पार बसा बारा व गहमर गांव का उस पार बाढ़ क्षेत्र में 75 प्रतिशत खेत हैं। खेतों में कार्य करने वाले लोग कृषि उपकरण, बैल गाड़ी आदि नाव पर ही लादकर गंगा पार करते हैं। बताते हैं कि इस इलाके के लोगों का जीवन यापन खेती पर ही आधारित है। अधिकांश लोगों का खेत गंगा उस पार है तो वहां जाना मजबूरी है और नाव ही एक मात्र सहारा है। लेकिन प्रदेश के अंतिम छोर पर होने से यह इलाका अभी तक सरकारी सुविधाओं से कोसों दूर है। पुल नहीं होने से लोगों के रिश्ते भी दूर हो गए हैं। एक कोस की दूरी अपनों से मिलने के लिए 40 से 50 किमी तय करनी पड़ती है। पीपा पुल का निर्माण हो जाने से आर्थिक फायदे के साथ – साथ सामाजिक लाभ भी मिलेगा। बारा गांव निवासी 85 वर्षीय हाजी मुश्ताक खान कहते हैं कि गंगा उस पार खेत है। बचपन से ही गंगा उस पार आना जाना लगा रहता है। पीपा पुल बनाने के लिए कई बार मांग भी की गई। चुनाव के दौरान सभी दल के घोषणा पत्र में भी पीपा पुल निर्माण शामिल रहता है। चुनाव बीत जाने के बाद यह ठंडे बस्ते में चला जाता है। यह लोगों के साथ छलावा है। गोपाल चौधरी ने बताया कि बीते 40 वर्षों से गंगा में नाव चला रहा हूं। दिन में चार से छह बार आना जाना होता है। खेतों में कार्य करने वाले लोग कृषि उपकरण नाव पर ही लादकर गंगा पार करते हैं। आज भी लोग वर्ष 1989 मे हुए भीषण नाव हादसे को भुले नहीं है।