ये पत्रकार बिचारे,भौंकाल के मारे

 गाजीपुर -अपने कलम और फोटो की ताकत से दुसरों को हक और न्याय दिलवाने वाले पत्रकार और छायाकारों का , कितना शोषण उनके मालिक करते है , इसे जानकर आप की रूह काँप जायेगी। गाजीपुर के टाप 3 अखबारों मे से एक के छाया कार से मैने पुछा कि आप को अखबार के तरफ से कितना महिना मिलता है तो , उसने बताया 4500/रुपया महिना। अब आप कल्पना करिये 150/रु० रोज पाने वाला छायाकार/ कैमरामैन एक-एक फोटो खिचने के लिये अपनी बाईक से सैदपुर,सादात, जमानियाँ,जखनियाँ दौड कर जाता है , अब आप ही सोचीये नंगा नहायेगा क्या? और निचोडेगा क्या ? ऐसा नही कि ये हालत मात्र छायाकार की है , यही हालत लगभग सभी स्टाफ की  और सभी प्रिंन्ट और इलेक्ट्रानिक मिडिया की है। एक बार मै अपने मित्र गिरीश दुबे के साथ वाराणसी के नदेशर स्थित मिंन्ट हाऊस पर था ( उस समय मै दुबे जी का फ्रि आँफ कास्ट सहयोगी था ) वाराणसी के सभी प्रिन्ट और इलेक्ट्रानीक मिडिया के छायाकार और पत्रकार इक्ठा थे , मैने सभी से मुखातिभ हो कर पुछा कि ” ” आप दुसरों की समस्यायों और परेशानीयों का तो समाधान कराते हो , लेकिन अपने शोषण के खिलाफ कभी आवाज क्यो नही उठाते हो ? किसी ने कोई उबाब नही दिया। आज भी जितना शोषण मिडिया से जूडे लोगो का होता है उतना सायद ही किसी का होता होगा। पत्रकारिता का नशा स्मैक/ब्राउन शुगर के नशे से भी खतरनांक होता है जो एक बार इस लाईन मे आ जाता है, वापस मरने के बाद ही जाता है। प्रिंन्ट मिडिया से जूडे क्षेत्रिय संबाद दाता फ्री मे काम करते है लेकिन पत्रकार के भौकाल से अछा खासा कमा लेते है। मेरे इस पोस्ट से किसी को कष्ट हो तो मै क्षमाप्रार्थी हूँ।

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